हाइकुकार
डॉ. लक्ष्मण प्रसाद नायक
हाइकु
पिया वो पार
जिया इस कुल पे
नाविक आ जा ।
●●●
लिपटी धूल
सिसकती सी कली
पैरों कुचली ।
●●●
बरसा पानी
मटमैला हो चला
जगत सारा ।
●●●
अजब याद
हूक सी दे जाती है
सोन चिरैया ।
●●●
जीवन प्यार
मरना कभी-कभी
लगता भला ।
●●●
रंग बिरंगी
तितली मदमाती
फूल सा गात ।
●●●
रेशमी धूप
झर-झर झरता
हरश्रृंगार ।
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें