हाइकुकार
अंजनी कुमार तिवारी "सुधाकर"
हाइकु
पूरब चला~
जहाज का सफर
क्षितिज पर!
○
उछल चली~
ज्वार भाटा निकल
सम्हल कर!
○
बैठता पाखी~
नाव मस्तुल पर
थकान भर!
○
सूरज डूबा~
लहर एक ओर
रहा न जोर !
○
अनुभव से~
जीतता सिकंदर
प्रयाण पर !
○
गंगा बहती~
हिमाचल स्थिर है
वो अधीर है !
○
मुक्ति की माला
जप रहा सन्यासी~
पंछी प्रवासी !
○
मंजिल आया
किनारा दिखता है~
माझी बताया !
○○○
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें