हाइकु कवयित्री
डॉ. रेखा जैन
हाइकु
बन के पंछी
उड़ता गगन में
बावरा मन ।
है प्रश्न मौन
चिन्तन का विषय
ईश्वर कौन ।
नाजुक नार
उठाये न उठता
यौवन भार ।
बकरी का गुण
खाती कीकर काँटे
दूध मधुर ।
अन्ध विश्वास
नाली में बहा दूध
बच्चे भूखे हैं ।
दिवारें दिल
उठती पहले हैं
धरा बाद में ।
कपड़ा नहीं
ध्वज है मेरी शान
तीन रंग में ।
जब जागते
होता तभी सवेरा
कहते ज्ञानी ।
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