हाइकुकार
यशवंत "यश" सूर्यवंशी
हाइकु
टूटा मकान
दीपक बना रहा
दीन आदमी ।
जलता दीप
रोशन हुए घर
तल में तम ।
पर के घर
जला रहे दीपक
स्वयं है तम।
चाइना दीये
धाक जमा रखे हैं
देशी खो रहे ।
दीप उद्दीप्त
मिट रहा अंधेरा
ज्ञान से तृप्त ।
बुझा दीपक
टूट गई है साँस
खोकर आस ।
दीपक जला
विलुप्त हुए तम
मिटा है गम ।
जलो मगर
दीपक की तरह
मिटे कलह ।
नयन खुले
अंधेरा में उजाला
दीपक जला ।
यश के खेल
जल रही जनता
है बिना तेल ।
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