हाइकु कवयित्री
नीलम शुक्ला
हाइकु
नन्ही सी भोर
बरखा की गोद में
सुहावनी सी ।
मचल रही ।
खेलने आँगन में
झड़ियों संग ।
लाड़ लड़ायें
विभोर हो वसुधा
चूमती शीश ।
भोर क्रीड़ाएं
जग मन हरती
मंगल बेला ।
प्रकृति मंच
बूंदों का थिरकना
सौम्य शोभना ।
झरते मेघ
मोतियन लड़ी से
मन मोहते ।
दुल्हन सजी
ओढ़ धानी चुनर
धरा निखार ।
हरी मेघो ने
विरह वेदनाएं
धरा प्रेयसी ।
दी सावन ने
यादों के झरोखों को
मिठ्ठी दस्तक ।
बूंदों ने छेड़ी
सरगम सुहानी
सावन रानी ।
झूमे है मन
सुन कजरी धुन
संग साजन ।
लगा काजल
वसुधा के आँचल
मेघ पागल ।
हँसी कोपले
पाकर आलिंगन
बूंदे प्रांगण ।
बरखा नृत्य
हरियाली सेज पे
झूमा पवन ।
अभिनंदन
हेतु आतुर भोर
रवि विभोर ।
नित नवीन
संस्कृति की जमीन
भोर सजाए ।
नई जागृति
उत्साह मधुशाला
ये भोर बाला ।
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