हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

हाइकु : नरेंद्र श्रीवास्तव


हाइकुकार

नरेंद्र श्रीवास्तव

हाइकु 


सावन मेघ
जल कलश लिये
पावस पर्व ।
    
पावस पर्व
बूँदों की मालाओं से
धरा श्रृंगार ।
    
प्यासी धरती
बरखा की बूँदों में
घड़ा का पानी ।
      
काली घटायें
बूँदों को विदा देने
नभ पे आयीं ।
     
बरखा बूँदें
आकाश से बिछड़ीं
धरा में खोयीं । 
      
मेघ ने भेजी
सावन सगुन की
बूँदों की बिंदी ।
     
मेघ की पाती
बूँद बूँद अक्षर
धरा ने छुये ।
    
मेघ ने भेजे
वर्षा बूँद सुमन
धरा महके ।
    
पावस पर्व
मेघ समूह करें
जल तर्पण ।
     
मेघ से आया
वर्षा केसर जल
धरा ने पिया ।
      
बरखा बूँदें
शीशे के मन्दिर में
तस्वीर तेरी ।
    
बरखा बूँदें
गुनगुनाती रहीं
विरहा गीत ।
     
दिन पहाड़
थक के सोयी रात
स्वप्न देखती ।
    
रोटी की आस
पसीने की बूँदों से 
तर दिवस ।
    
महके पल
यत्र, तत्र, सर्वत्र
जीवन पुष्प ।
    
भोर से आस
साँझ से शिकायत
यही ज़िन्दगी ।
     
सूर्य किरणें
अँधेरा तलाशतीं
लौटी निराश ।
     
गाँव-शहर
ज़िन्दगी की कविता
लिखे पहर ।
    
दिन और रात
उम्र चढ़ती चले
जीवन सीढ़ी ।
     
खुशी मिली तो
आँसू झट आ गये
यादें लेकर ।
    
आँसू भरे थे
नयनों के डिब्बे में
छूते ही गिरे ।
    
उसने कहा
ज़िन्दगी रंगमंच
गलत नहीं ।
    

□ नरेंद्र श्रीवास्तव

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

MOST POPULAR POST IN MONTH