हाइकु कवयित्री
डॉ. शैल रस्तोगी
हाइकु
कहाँ सहेजूँ
इतनी सारी धूप
छोटा सा घर ।
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बरसात में
पियराया पीपल
झरने लगा ।
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बादल छँटे
पेड़ों को हँसी आई
शर्मायी धूप ।
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उम्र चिरैया
इधर से उधर
ढूँढती दिशा ।
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चाँद झूमर
सितारे टाँकी साड़ी
रात के ठाठ ।
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पनीली आँखें
सपने बुनती हैं
मानती नहीं ।
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सोई है धूप
तलहटी जागती
थकी लड़की ।
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नकचढ़ी है
राजकुमारी-धूप
सौ-सौ नखरे ।
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धूप की बातें
सुनते थक गये
उनींदे घर ।
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हार गई मैं
गिने न गये तारे
मन सो जा रे ।
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