हाइकु कवयित्री
उर्मिला कौल
हाइकु
पियरी ओढ़
मुसकाई धरती
हे ऋतुराज !
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बगिया छूटी
भूली-तितली-रही
ढूँढती फूल ।
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फुटबॉल को
किसने किक मारी
अः चाँद टंगा ।
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ओढ़ सो गयी
शरद की चाँदनी
भोली धरती ।
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ठूँठ बाहों में
फंसा सूरज देख
हंसी कोंपलें ।
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एकम चांद
टूटी चूड़ी का एक
टुकड़ा अरे !
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कौन ले गया
पोटली में बाँध के
भोला सा चाँद ।
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डूबता दिन
हारा मन देखता
थका सूरज ।
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सिसकी हवा
उड़ चल रे पंछी
नीड़ पराया ।
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बजता नहीं
देह का झुनझुना
बजाऊँ कैसे ।
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लगा था मुझे
दुनिया ठहरेगी
कहाँ ठहरी ?
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सूना ललाट
हिमालय पूछेगा
बिंदिया कहाँ ?
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