हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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रविवार, 11 अगस्त 2019

हाइकुकार स्व. डॉ. भगवत शरण अग्रवाल जी के उत्कृष्ट हाइकु


हाइकुकार 

डॉ. भगवत शरण अग्रवाल 

हाइकु


कुछ देते ही 
पत्थर खा कर भी 
वृक्ष देवता ।
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तोड़ते क्यों हो ?
शीशा तो जो देखेगा 
वही कहेगा ।
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सत्य ने छला !
झूठ ने छला होता -
दुख न होता ।
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कहानी मेरी !
लिखी किसी और ने -
जीनी मुझे है !
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बूँद में समा 
सागर और सूर्य 
हवा ले उड़ी ।
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काश ! दे पाता 
मनुष्य को आकाश 
ईश को धरा ।
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तुम्हारे बिना 
दीवारें थीं, छत थी
घर कहाँ था ?
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टूटे अक्षर
गहराये सन्नाटे 
काँपते हाथ ।
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ख़ामोशियों में 
पिघल गई रात 
बूढ़ाये स्वप्न ।
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मर जाऊँगा ?
यकीन नहीं होता !
फिर क्या होगा ?
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□  डॉ. भगवत शरण अग्रवाल 
396, सरस्वती नगर, अहमदाबाद 
(गुजरात)

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