हाइकु कवयित्री
डॉ. सुरंगमा यादव
हाइकु
1.
कुहू के बोल
दादुर क्या समझें
उनका मोल !
2.
तूने जो बोया
है काटने की बारी
अब क्यों रोया ।
3.
अंधी है दौड़
कैसे,कितना पा लूँ
मची है होड़ ।
4.
बड़े मकान
शो पीस की तरह
सजे हैं रिश्ते ।
5.
मृत्यु अटल
आज नहीं तो कल
व्यर्थ विकल ।
6.
छूटे जो प्राण
देह-धन हो गये
धूल समान ।
7.
पहुँचाएगी
दर्द की पगडंडी
सुख के गाँव ।
8.
सिर पे ढोता
दिन भर श्रमिक
तपता सूर्य ।
9.
नारी का मन
कविता का भावार्थ
जाने भावुक ।
10.
काँटे भी अब
देते नहीं चुभन
अभ्यस्त हम ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें