हाइकुकार
अविनाश बागड़े
हाइकु
ये सतरंगी
इंद्रधनुषी छटा
गगन पटा ।
औषधि गुण
सुबह का समीर
ले तू भी सुन ।
हवा दुबकी
अटकी हलक़ में
साँसें सबकी ।
वो पीला पत्ता
कातर सी निगाहें
खामोश पेड़ ।
होली के फाग
मधुर लोक राग
दूर बैराग ।
हर मन्नत
रुकती यहीं पर
माँ है जन्नत ।
ये प्रेम गाथा
ओस कणों की कथा
रजनी व्यथा ।
चंदन जैसी
सुगंध बिखेरती
देश की माटी ।
निसर्ग रचा
वन पर्वत गुफा
सैलानी नफा ।
बहे समीर
अदृश्य सी तस्वीर
अपने तीर ।
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