हाइकुकार
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
हाइकुकार
रकीब मेरा
जलता है मुझसे
हो के निराश ।
दावानल तो
जलाती है जंगल
यादें दिल की ।
फसल झूमें
पकतीं भादों मास
खुश किसान ।
दुःखी भंवरा
शरारती बालक
नोंचता फूल ।
जड़ से जुड़ा
पेड़ रहता खड़ा
पोषित होता ।
भोर प्रहर
उषा छाती लालिमा
लाती खुशियाँ ।
मिट्टी का तन
पेट में धधकती
भीषण आग ।
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