हाइकुकार
सुरेंद्र बांसल
हाइकु
नेह अनंत
यादों के बंधन में
आदि न अंत ।
उसका नेह
मन मरुस्थल में
बरसे मेह ।
पीड़ा है बांझ
जनती नहीं आंसू
यादों की सांझ ।
हाथ की रेखा
विस्मित हो पूछे
भाग्य को देखा ?
कैसा विधान
सत्य पथ पे कटे
दु:ख लगान ।
आत्म उड़ान
हर क़ैद से छूटो
यही निदान ।
ओ मन मीत
देह बालू की भीत
मन को जीत ।
भूख - बेकारी
ख़्वाब हुए दिव्यांग
हाय लाचारी ।
मुखर मौन
मन बैरंग पाती
बांचता कौन ?
ज्ञान - अज्ञान
सब दर्शन बोझा
गुम इंसान ।
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