हाइकुकार
ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
हाइकु
उम्र बढी है
लौटा है बचपन
बूढ़ा है तन ।
खोई मस्तियाँ
बड़प्पन में मेरी
डूबी कश्तियाँ ।
हूँ पचपन
हरकत ऐसी है
ज्यों बचपन ।
मैँ भी हूँ जवाँ
उम्र घटती जाती
बढ़ती कहाँ ?
डूबता सूर्य
स्वागत करे चाँद
आ जा तू वर्ष ।
मत्त फसलें
रच दें इतिहास
यादों के दिन
नई सौगातें
बाँटता चला गया
नया था वर्ष ।
क्षण ने बोई
दिन की जो फसलें
वर्ष ने काटी ।
क्षण की आँधी
निगल गई वर्ष
यादों के साथ ।
नहाए दिन
बन ठनके लाएँ
नया उत्कर्ष ।
वर्ष के पृष्ठ
लिखेगा इतिहास
यादों का पेन ।
बुढ़ा गया है
सोलह का यौवन
आ जा सत्रह ।
यादों के बीज
समय की भूमि पे
रचे साहित्य ।
हाथों से रेत
फिसल गए दिन
यादों के बिन ।
वधू लगाए
हाथों पर मेहंदी
वर मुस्काए ।
मेहंदी रचे
मन की हथेली पे
खिले चेहरा ।
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