हाइकु कवयित्री
डॉ. रंजना वर्मा
हाइकु
सघन घन
डोल रही पवन
बजे झाँझर ।
बरखा नार
मुख रही निहार
झील दर्पण ।
पर्वत मन
जब होता उन्मन
जल सृजन ।
हवा का झूला
झूल रही जिंदगी
पतली डोर ।
पिघली बर्फ़
झुकता हिमालय
जल संकट ।
ऊँचा गगन
धुंए से प्रदूषित
श्वांस दूभर ।
सुमन खिला
उपवन महका
छू गयी हवा ।
लगे बजाने
झींगुर शहनाई
बरखा आयी ।
धुँधला चाँद
क्षितिज छोर पर
निशा का आँसू ।
काट हैं डाले
बिना सोचे पादप
बढ़ा आतप ।
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□ डॉ. रंजना वर्मा
पुणे (महाराष्ट्र)
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