हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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सोमवार, 9 सितंबर 2019

~ हाइकु कवयित्री डॉ. रंजना वर्मा जी के हाइकु ~


हाइकु कवयित्री 

डॉ. रंजना वर्मा 


हाइकु 


सघन घन
डोल रही पवन
बजे झाँझर ।

बरखा नार
मुख रही निहार
झील दर्पण ।

पर्वत मन
जब होता उन्मन
जल सृजन ।

हवा का झूला
झूल रही जिंदगी
पतली डोर ।

पिघली बर्फ़
झुकता हिमालय
जल संकट ।

ऊँचा गगन
धुंए से प्रदूषित
श्वांस दूभर ।

सुमन खिला
उपवन महका
छू गयी हवा ।

लगे बजाने
झींगुर शहनाई
बरखा आयी ।

धुँधला चाँद
क्षितिज छोर पर
निशा का आँसू ।

काट हैं डाले
बिना सोचे पादप
बढ़ा आतप ।
~ • ~

□  डॉ. रंजना वर्मा 
पुणे (महाराष्ट्र)

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