हाइकु कवयित्री
नीलम भारद्वाज
हाइकु
01.
रवि ने खोला
भोर का दरवाजा
भागा अंधेरा ।
02.
क्यों निराश हो
हर साल के बाद
होता सवेरा ।
03.
है जिंदगानी
चार दिन का मेला
हँसो-हँसाओ ।
04.
उम्मीद की लौ
जला कर मन में
बढ़ते चलो ।
05.
कूकी कोयल
विरह की तपिश
प्रेमी मन में ।
06.
माप सके जो
मन की गहराई
ढूँढो मापक ।
07.
अकेला आता
इंसान दुनिया में
जाता अकेला ।
08.
छँट जाते हैं
दुख के बादल भी
मीठे बोलों से ।
~ • ~
□ नीलम भारद्वाज
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें