हाइकुकार
प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
हाइकु
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पीर सताती
जुटा न पाया बाप
दो वक्त रोटी ।
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हाय जिंदगी
भौतिकता की चाह
दौड़ लगाती ।
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पाना जो चाहा
सब कुछ पा लिया
मन क्या भरा ?
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जीवन जान
मन और चेतना
सर्वस्व मान ।
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