हाइकु कवयित्री
डाॅ. सुरंगमा यादव
हाइकु
निशा सो गयी
अंक में भरकर
साँझ शिशु को ।
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गाती सुबह
दौड़ रहा दिवस
थकी रजनी ।
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चाँद आया तो
उछल पड़ा कैसे !
देखो सागर ।
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नदी विकल
फिर भी न ठहरी
पल दो पल ।
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निष्फल हुई
पाषाण हृदय पे
आँसू की वृष्टि
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रेतीला तट
कलाकार के भाव
पाते आकार
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गाँव से आये
फुटपाथ पे पड़े
कितने स्वप्न
पाषाण हृदय पे
आँसू की वृष्टि
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रेतीला तट
कलाकार के भाव
पाते आकार
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गाँव से आये
फुटपाथ पे पड़े
कितने स्वप्न
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