हाइकुकार
स्व. शम्भु शरण द्विवेदी "बन्धु"
हाइकु मुक्तक
[१]
रह सकना/ जीवन में एकाकी/सरल नहीं |
बह सकना/ धारा के विपरीत/सरल नहीं |
होती रहेगी/'नरो वा कुंजरो वा'/पुनरावृत्ति--
कह सकना/सच को सच सदा/सरल नहीं ||
[२]
युवा हैं तीर /तो गांडीव समान/हैं वृद्ध जन |
युवा हैं पार्थ/तो गीता ज्ञानदाता/हैं वृद्ध जन|
अरे युवाओं/वृद्धों को कालातीत/मत समझो --
देते हैं तोष/अनुभव के कोष/हैं वृद्ध जन ||
[३]
इष्ट मित्रों का/आह्लादकारी संग/छूटेगा कभी|
यौवन-धन / समय का तस्कर /लूटेगा कभी|
हो ले मुदित/ खाके मनमोदक/अमरत्व के --
जीवन घट/कच्ची मिट्टी से बना/फूटेगा कभी||
□ शम्भु शरण द्विवेदी "बन्धु"
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