हाइकु कवयित्री
मंजू सरावगी "मंजरी"
हाइकु
सरसों फूली
धरा करें श्रृंगार
आया बसंत ।
आम बौराया
कोयल कुहुकती
बंसत ऋतु ।
पलाश खिले
यौवन दहकता
धरा बेहाल ।
चाँद बहका
देख धरा यौवन
बाहों में लेने ।
चाँदनी रात
यौवन बहकता
चाँद के साथ ।
जग की रीत
भेड़ चाल चलती
सही गलत ?
नाऊ बारात
सब सजे तैयार
टीपारा कौन ।
ऋतु सुहानी
पुरवाई मस्तानी
धरा हो जवाँ ।
पीली चूनर
धरती इठलाती
पिया के संग ।
काजल टीका
कोयले को नजर
कैसे बचाये ।
चक्र चलता
मौसम बदलते
ऋतु कहते ।
आवागमन
सुख दुःख का चले
काल के साथ ।
चाँद सूरज
समय का पहिया
एक ही दिशा ।
□ मंजू सरावगी "मंजरी"
रायपुर, (छतीसगढ़)
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