हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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सोमवार, 20 जनवरी 2020

हाइकु कवयित्री मंजू सरावगी "मंजरी" जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री
मंजू सरावगी "मंजरी"

हाइकु

सरसों फूली
धरा करें श्रृंगार
आया बसंत ।

आम बौराया
कोयल कुहुकती
बंसत ऋतु ।

पलाश खिले
यौवन दहकता
धरा बेहाल ।

चाँद बहका
देख धरा यौवन
बाहों में लेने ।

चाँदनी रात
यौवन बहकता
चाँद के साथ ।

जग की रीत
भेड़ चाल चलती
सही गलत ?


नाऊ बारात 
सब सजे तैयार
टीपारा कौन ।

ऋतु सुहानी
पुरवाई मस्तानी
धरा हो जवाँ ।

पीली चूनर
धरती इठलाती
पिया के संग ।

काजल टीका
कोयले को नजर
कैसे बचाये ।

चक्र चलता
मौसम बदलते
ऋतु कहते ।

आवागमन
सुख दुःख का चले
काल के साथ ।

चाँद सूरज
समय का पहिया
एक ही दिशा ।

□ मंजू सरावगी "मंजरी"
रायपुर, (छतीसगढ़)

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