हाइकुकार
प्रिन्स मंडावरा
हाइकु
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कपासी गर्मी
जेठ में शीतलता
माँ का दुलार ।
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ढलता रवि
शर्म से हुई लाल
नभ चाँदनी ।
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कणो में बसा
तन मन का मैल
त्रस्त ब्रह्मांड ।
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पापों की देन
फैलता प्रदूषण
दुःखी मानव ।
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प्रकृति करे
राक्षसों का विनाश
मिटता पाप ।
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रथ सवारी
आधुनिकता होड़
घुटता दम ।
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मेघों के झुंड
निगलते सूर्य को
ले जल कुंड ।
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मन को मोह
निकल पड़ी हवा
प्राण भरने ।
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□ प्रिन्स मंडावरा
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