पूर्णिमा साह
हाइकु
--0--
सोये न जागे
अलसाई पलकें
देखें सपने ।
--0--
कर्म को मान
स्व हाथ जगन्नाथ
क्यों दिवा स्वप्न ।
--0--
दिवस कर्म
मन में ले हिल्लोरें
देखें सपने ।
--0--
नैनों में छाए
सतरंगी सपने
लगे अपने ।
--0--
पाती प्रेम की
हर रोज लिखती
भेज न पाई ।
--0--
मीठी आदतें
भुलाए न भुलती
नैन भिगोती ।
--0--
दिल जमीं को
भिगोती रही अश्रु
पुरानी यादें ।
--0--
यादों के धन
खजानें अनमोल
संभाले चल ।
--0--
दिल से हारे
गर्दिश में सितारे
जग के आगे ।
---0---
□ पूर्णिमा साह
(पश्चिम बंगाल)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें