हाइकु कवयित्री
शीला शर्मा
हाइकु
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शब्द दामिनी
सवलता स्वामिनी
निर्झर यही ।
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परंपरा का
आध्यात्मिक दर्शन
नदी सा भाव ।
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हदें निगाहें
संस्कारों से विमुख
शून्य सी स्थिति ।
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स्मृति लहर
उमड़ती सी आई
डूबती गई ।
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मनाया जश्न
ओढ़ लिए सैलाब
सो गए प्रश्न ।
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तृण नोकों से
मुस्कराती है ओस
क्षणभंगुर ।
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भू आच्छादित
अद्भुत संयोजन
ऋतु योजन ।
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निखरे वही
जो बिखरा होता है
तजुर्बा यही ।
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□ शीला शर्मा
नागपुर (महाराष्ट्र)
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