हाइकुकार
दिनेश रस्तोगी
हाइकु
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मानव वन
करुणा,प्रेम,दया
ईश सर्वत्र ।
साफ रखिये
हृदय का दर्पण
हरि दर्शन ।
देश अपना
लुटेरे भी अपने
यही तो रोना ।
मचले तन
कसमसाता मन
लगी लगन ।
सूरज अस्त
संध्या हो रही मस्त
दोनों अभ्यस्त ।
मोह के पत्ते
सूख सूख गिरते
वृक्ष बुढ़ापा ।
तितलियों के
फूलों से थे इशारे
हम तुम्हारे ।
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□ दिनेश रस्तोगी
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