हाइकुकार
शंम्भू सिंह रघुवंशी "अजेय"
हाइकु
मासूम कली
सदा दबी मसली
फिर भी फली ।
कलिका चली
भगवान को भली
पीढियां जलीं ।
सुमन कली
पाशविकता खली
सरिता गली ।
मैं रामकली
उदर में मचली
आई धवली ।
फुलबगिया
परिवार कलिका
अश्रुछलिका ।
तट हमारा
ढूंढते पतवार
तुम्हारे द्वार ।
नदी किनारे
संगम इतराएं
गंगा नहाते ।
देखते कूल
समय प्रतिकूल
जीवन धन ।
जीव विकट
असमंजस तट
ये मरघट ।
दूर किनारा
अखिलेश सहारा
फिरता मारा ।
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□ शंम्भू सिंह रघुवंशी "अजेय"
मगराना, गुना (म. प्र.)
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