हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

चित्र आधारित चोका लेखन प्रतियोगिता (फरवरी-2021)

चित्र आधारित चोका लेखन प्रतियोगिता

हाइकु ताँका प्रवाह

(माह : फरवरी - 2021, क्र. 10)

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1.

आया प्रभात

स्वर्णिम सा उजास

खिलती कली

कुहासे संग ढली

खोलती मुख

मिल जाये प्रकाश

आयेगा अलि

मकरंद की चाह

लेगा पराग

सुवासित पवन

बहेगी हौले

इतनी सी चाहत

फिर माली तोड़ ले ।


गंगा पांडेय 'भावुक'


2.

कांटो से लड़ी

शबनम में भीगी 

भोर में खिली 

मासूम सी है कली

बासन्ती रंग

अधखिला बदन 

धीमी खुशबू

छिप रहा यौवन

धड़के मन

छेड़ रहा पवन

गाये भंवरा

मंडराए तितली

खिलता रूप

शर्माती पंखुड़ियां

हरीतिमा ने

थामा मेरा जीवन

पीला गुलाब

खुशी और सौभाग्य

का है प्रतीक

देता एक सन्देश

परमप्रिय

ध्यान रखे अपना

सामाजिकता

मित्रता का प्रतीक

पीला गुलाब

सुप्रभात में तारा

चमके सदा

सन्देश देती कली ।


निर्मला हांडे


3.

ब्रम्ह मुहुर्त

ओस का आलिंगन

प्रसन्न पुष्प

मुस्कान बिखेरता

सीख कर्म का

देने लगा अनोखा

मिली प्रेरणा

हँसी नन्ही कलियाँ

पाखी ने छोड़ा

घोसलों में बिछौना

शंखनाद के स्वर

भोर के कर्ण

सिंदुरिया दामन

लहराकर

वसुंधरा प्रांगण

अनंत ऊर्जा

लाई संग सौगात

हँसा पंकज

देता रवि को अर्ध्य

श्रद्धा का पर्व

देख भोर बिसात

गूँजता सुप्रभात !!!


नीलम शुक्ला


4.

अधखिली सी

ओस ओढ़े पंखुड़ी

भिगोती फूल

राह में पंक रोड़े

या मिले शूल

वो खिलना ना भूले

जाड़ा या धूप

सहिष्णु गुण मूल

हो अनुकूल

या वक़्त प्रतिकूल

टूटा, बिखरा

हर पीड़ा क़बूल

शाख़ को छोड़

झर के जाना कूल

एक बसंत

क्षणिक है जीवन

सजा लो शीश

या चरणों की धूल

रंग बिखेरे

पर हित उसूल

जीना सिखाते फूल ।


विद्या चौहान


5.

भ्रमर राग

मुद मंगल गान

अवनि जाग

शुभ नव विहान

स्वर्ण रश्मियाँ

उज्जवल वितान

चटकी कली

अधरन मुस्कान

ओस ठिठके

मखमली संज्ञान

हरित पर्ण

प्रकृति नव प्राण

शुभ्र जलज

सरोवर की शान

सुरम्य ऊषा

छेड़े जीवन तान

चित्त बैरागी

फिरे  सब जहान

जाग मनुज

दृढ़ कर संधान

प्रकृति का आह्वान ।


शर्मिला चौहान


6.

पीत पुष्प हूँ 

विकसित प्रवृति

खुश्बू बिखेरूं

होता मनभावन

आदर्श बना

आशा से परिपूर्ण

शीश चढ़ता

प्रभुजी के मस्तक

धन्य हो जाता

स्व अस्तित्व रखता

मेरी नियति

परोपकार करूं

सबको  भाता

सबके घर आता

न भेदभाव

न गरीब अमीर

सभी है मेरे

मै रहता सबका ही

हरीतिमा फैलाऊँ ।

 

निर्मला पांडे


7.

टपकी रात 

ओस की बूंदे सारी

फूल औ पाती

भीगी है फुलवारी..

आँसू से सींचा

चमन लागे न्यारा

मोती बिखरे

कैसा श्रृंगार प्यारा..

अश्क किसी के

ले के कोई खिलता

सुगंध फैला

मुस्कुरा के मिलता..

ये खेल सारा

किस्मत पे ठहरा

लगता पार

कोई डूबे गहरा..

खुश रहना

मेरे फूल हरदम

उड़ जाउंगी

धूप के पड़ते ही

प्रेम न होगा कम ।


अमिता शाह "अमी"


8.

ओस ने छुआ

कली कुनमुनाई

पाँखुरी खिलीं

कपोल से फिसलीं

पारद बूँदें

निष्कलुष सौंदर्य

पीताभ छवि

हरित परिधान

सृजन का उन्वान ।


सुधा राठौर


9.

नयन खोल

अलसाए भोर में

पद्म कलिका

श्वेत रंग मे रंगी

मदमस्त  हो

निहार दल चूमे

रवि स्पर्श से

हौले हौले खिलता

मै अम्बुज हूँ

अनुपम सृष्टि हूँ 

सुन्दरतम्

सांकेतिक  रचना

राष्ट्रीय फूल 

शुद्धता सुंदरता

पंक निलय

सलिल मे खिलता

जग निहारूं 

पौराणिक वृतान्त

विधाता देव

प्रसून पंकज से

अमल पुष्प

विष्णुप्रिया आसीन

देते आशीष

समृद्धि फलें फूले

संकुल वन

अलिकुल झूमते 

बिखेरे राग 

मधुर ताल लिये

कर्म बिया का

भरपूर औषधी 

फल आहार

अनुपम अनूठा

नीचे लहरें 

ऊपर स्थिर खड़ा

ठाकुर द्वार

शोभायमान होता

अमूल्य धरोहर ।


रूबी दास

              


10.

मैं शतदल

खिलने को आतुर

होगा सबेरा

फैलाऊॅं पंख सारे

भरूॅं उड़ान

कहूॅं शुभ प्रभात

बाॅंटू खुशियाॅं

कैसी हो कठिनाई

मानूॅं ना हार

भाल बूॅंदें श्रम की

देतीं प्रेरणा

जीतूॅंगा जग सारा

यही संदेशा प्यारा ।


सुषमा अग्रवाल


11.

अंक धरा का

पुलकित हो कर

सृजन दिव्य

जब यूं खिल जाए

मृदुल स्पर्श

मधुरिम तरंग

झूमें पवन

जल कण  हैं संग

नयन बंद

नासापुट चंचल

आत्म मुग्धता

आनंद अखण्डित

है पुष्प समर्पित ।


डॉ. शीला भार्गव


12.

आये हैं द्वारे

मन की है भावना

मनो भाव से 

करते हैं प्रार्थना

पुष्प लेकर

सुनो प्रभु  वंदना

सुखी जीवन

हो, यही है  कामना

हाथ जोड़ याचना ।


मीरा जोगलेकर


13.

ओस ने बुनी,

ऊषा संग चुनरी,

प्रत्यूषा लाली,

दुल्हन का स्वरूप,

भोर सजाती,

पंछियों का संगीत

वृंदा झूमती

फूल बने बाराती

पुरवाई का प्यार ।


पूनम मिश्रा पूर्णिमा


14.

हुई  है भोर

मै खिल रहा  जब

ओंस की बूंद 

दे रही थी पहरा

छोड़ जंजीर  ऐसी

फिर अडिग 

संबल ही था मेरा

हो रही थी सुबह

निखर रहा था मै ।


कविता कौशिक


15.

ओस की बूंदे

खिले पुष्प अधर

महके बाग

संग है हरियाली

भोर भी काली

बरसे यूँ शबनम

पंखुड़ी झांके

प्रभु चरण साजे

अर्पित करूँ

मोहब्बत पैगाम

मंदिर और धाम ।


रेशम मदान


16.

अँगड़ाई ले

खिल रहा अंबुज

अलसुबह 

भँवरे का चुंबन

दे आलिंगन

सूरज की किरणें

रूप निखारे

मोती से चमकते

तुहिन कण

अलौकिक श्रृंगार

प्रकृति का प्यार ।


रमा वर्मा

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