हाइकु कवयित्री
सुधा राठौर
हाइकु
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धान कुटाई
क्षुधातुर हँडिया
खिलखिलाई ।
बहा ले गई
बेमौसम बरखा
बीज के स्वप्न ।
मेघ डिठौना
बदली की गोद में
सूरज छौना ।
पिया से मिली
गोखरू सनें बाल
करें चुगली ।
मुखाग्नि नहीं
बेवारिस सी लाशें
गंगा में बहीं ।
खूँटी पे थैला
बेरोजगार बापू
दोनों ही खाली ।
मिलेगा खाना
कुर्सी का आश्वासन
धूर्त बहाना ।
शिक्षा में क्रांति
यांत्रिक शिक्षा नीति
चश्मे से प्रीति
मन बेचैन
कोरोना बैरी लूटे
रिश्तों के बैन
ज़िन्दगी मेला
रीता सुख का ठेला
दुःख अकेला ।
कांटों में बिंधा
मुस्कान कहती है
ग़ुल है ज़िंदा ।
माता को खोना
दुनिया की भीड़ में
तन्हाई ढोना ।
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□ सुधा राठौर
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