हाइकु कवयित्री
सुधा राठौर
हाइकु
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मुठ्ठी में रेत
वक़्त सी फितरत
खाली है हाथ ।
हिना की ज़ुबां
कुँवारी की ख़्वाहिश
सुहाग निशां ।
वामांगिनी है
दोनों भूमिका खरी
घर की धुरि ।
रस्सियां ढीलीं
मचिया का पालना
शैशव सोया ।
जोड़- घटाना
जिंदगी का गणित
अंत में शून्य ।
काग़ज़ नाव
बह गए सिद्धांत
तिनकों जैसे ।
वादों का शोर
हम हैं कमज़ोर
सौंप दी डोर ।
आत्ममुग्धता
कर्म विहीन कथ्य
कहां है सत्य ।
बताओ पार्थ
कैसे हो परमार्थ
बगैर स्वार्थ ।
उधड़े रिश्ते
रफ़ूगिरी की कला
क़ारग़र है ।
कैसा प्रारब्ध
मिटा देता लकीरें
कर्म सक्षम ।
धैर्य का बल
चुटकी बजाते ही
समस्या हल ।
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□ सुधा राठौर
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