हाइकु कवयित्री
अंजुलिका चावला
हाइकु
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माँ की अँखियाँ
खपरैल की छत
सदैव नम ।
⛈️
गीले में सोया
माँ से चिपककर
मन ये भीगा ।
⛈️
खेत की मिट्टी
बाबा की बिवाइयाँ
दोनो में साम्य ।
⛈️
कुएँ हैं भरे
उम्मीदें लबालब
फूटे ज्यों झिरे ।
⛈️
टीन सुनाए
बूँदों की सरगम
बरखा आए ।
⛈️
जन्मे पनाले
स्वागत है बरखा
चूल्हा बचा ले ।
⛈️
जागी है आशा
कृषक ने बाँच ली
बूंदों की भाषा ।
⛈️⛈️⛈️
~ अंजुलिका चावला
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