हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

रविवार, 26 सितंबर 2021

दीप और पतंग (हाइकुकार : प्रदीप कुमार दाश "दीपक")

दीप और पतंग

हाइकु 

1)

पूस की रात 

हल्कू जाएगा खेत 

मन उदास ।


2)

अकड़ खूब 

बहे बाढ़ में पेड़ 

बचती दूब ।

 

3)

नदी सिमटी 

कचरों के ढेर में 

पीर उफनी ।


4)

स्मृति कोलाज

अँसुवन की धार 

गीले अल्फाज ।


5

माटी का तन

प्रकृति की गोद में 

ठहरा मन ।


6

अमा की रात 

दीप बेपरवाह 

स्वयं प्रकाश ।


7

अमरबेल 

बढ़ती जाती लता 

सत्ता लालसा ।


8

धूप से तंग

उड़ गए बेमन 

फूलों के रंग ।


9

थोड़ी सी राख 

अंतिम सत्य यही 

फिर भी साख ।


10

कली चटकी 

भौंरे थे मतवाले 

महक लुटी ।


11

व्योम से पानी 

समष्टि हेतु सदा 

वो बलिदानी । 


12

धरा - आकाश 

कोहरे की चादर 

कोमल पाश ।


13

उषा के भाल

दमकती बिंदिया 

सूरज लाल ।


14

दीप सम्मुख

थकी, हारी व झुकी 

निविड़ निशा ।


15

घना अंधेरा 

दीप जलता रहा 

मन अकेला ।


16

प्रीत में जंग 

कैद हुआ गुलाब 

डायरी बंद ।


17

स्वच्छ है जल 

कीचड़ से निकला 

खिला कमल ।


18

वृक्ष है चुप 

हवा, पानी व धूप 

सँवरे रूप ।


19

भीड़ दिखावा 

साथ यहाँ छलावा

चल अकेला । 


20

वक्त की मार 

पतझड़ में पत्ते 

सहते घात । 


21

तंतु हजार 

बुनती चदरिया 

देह जुलाहा ।


22

चली कुल्हाड़ी 

रोते देख पेड़ को 

रुठे हैं मेघ । 


23

खिले सुमन 

बाँचती चली हवा 

मृदु सुगंध ।


24

चांद सौगात 

चेहरा चमकाती 

कजरी रात ।


25

चांद तनहा 

झील की पगडंडी 

चला अकेला ।


26

आँखें बोलतीं 

सन्नाटे की आवाज 

राज खुलती । 


27

कुएं में बाल्टी 

जब जब झुकती 

भर के आती ।


28

शलभ गान 

प्रेम पंथ दीपक 

महाप्रयाण ।


~ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

MOST POPULAR POST IN MONTH