दीप और पतंग
हाइकु
1)
पूस की रात
हल्कू जाएगा खेत
मन उदास ।
2)
अकड़ खूब
बहे बाढ़ में पेड़
बचती दूब ।
3)
नदी सिमटी
कचरों के ढेर में
पीर उफनी ।
4)
स्मृति कोलाज
अँसुवन की धार
गीले अल्फाज ।
5
माटी का तन
प्रकृति की गोद में
ठहरा मन ।
6
अमा की रात
दीप बेपरवाह
स्वयं प्रकाश ।
7
अमरबेल
बढ़ती जाती लता
सत्ता लालसा ।
8
धूप से तंग
उड़ गए बेमन
फूलों के रंग ।
9
थोड़ी सी राख
अंतिम सत्य यही
फिर भी साख ।
10
कली चटकी
भौंरे थे मतवाले
महक लुटी ।
11
व्योम से पानी
समष्टि हेतु सदा
वो बलिदानी ।
12
धरा - आकाश
कोहरे की चादर
कोमल पाश ।
13
उषा के भाल
दमकती बिंदिया
सूरज लाल ।
14
दीप सम्मुख
थकी, हारी व झुकी
निविड़ निशा ।
15
घना अंधेरा
दीप जलता रहा
मन अकेला ।
16
प्रीत में जंग
कैद हुआ गुलाब
डायरी बंद ।
17
स्वच्छ है जल
कीचड़ से निकला
खिला कमल ।
18
वृक्ष है चुप
हवा, पानी व धूप
सँवरे रूप ।
19
भीड़ दिखावा
साथ यहाँ छलावा
चल अकेला ।
20
वक्त की मार
पतझड़ में पत्ते
सहते घात ।
21
तंतु हजार
बुनती चदरिया
देह जुलाहा ।
22
चली कुल्हाड़ी
रोते देख पेड़ को
रुठे हैं मेघ ।
23
खिले सुमन
बाँचती चली हवा
मृदु सुगंध ।
24
चांद सौगात
चेहरा चमकाती
कजरी रात ।
25
चांद तनहा
झील की पगडंडी
चला अकेला ।
26
आँखें बोलतीं
सन्नाटे की आवाज
राज खुलती ।
27
कुएं में बाल्टी
जब जब झुकती
भर के आती ।
28
शलभ गान
प्रेम पंथ दीपक
महाप्रयाण ।
~ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें