हाइकु कवयित्री
शर्मिला चौहान
होरी के हाइकु
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आगी लग गे
फागुन तिहार में
टेसू फूल गे ।
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संझा बिहान
बाजथे मन भर
ढोल नगाड़ा ।
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फाग सुनाथे
आनी बानी के संगी
जी हा लुटा गे ।
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रद्दा देखत
बीत गिस महीना
नैना पीरा गे ।
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नैना ढूँढथे
सुंदर मोर संगी
कहांँ लुका गे ।
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होली खेलथों
संगवारी के संग
नथ गवाँ गे ।
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संगी के संग
चारों डहर रंग
मन रंगा गे ।
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~ शर्मिला चौहान
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