हाइकु कवयित्री
डॉ. करुणा उमरे (स्व.)
हाइकु
1.
तीन नयन
सूर्य चंद्र यमुना
शमन मन ।
2.
धर्म नहीं है
समय को गिनना
किंतु तौलना ।
3.
बौर पराग
अधरों में फागुन
गीत सा जाग ।
4.
भोर तपी है
शान्ति हेतु हवा ने
माला जपी है ।
5.
गगन लोक
किरणों को पा कर
होता अशोक ।
6.
मधुर गंध
खिल उठा ज्यों यह
धरती मुख ।
7.
नभ आँचल
स्वर्ण कलश सम
दिखे प्रांजल ।
8.
हवा धड़की
पेड़ बन गई है
एक लड़की ।
9.
मौसम आए
आँखों की पुतली में
गुलाब छाए ।
10.
पल में रेत
ढहे घरौंदा जब
देता है खेद ।
~ डॉ. करुणा उमरे
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