हृदय किसलय के सुंदर उद्गार - 'हाइकु हरसिंगार'
विदूषी हाइकु कवयित्री आ. इंदिरा किसलय जी का प्रथम हाइकु संग्रह 'हाइकु हरसिंगार' प्राप्त हुआ, मन बाग-बाग हो उठा । मेरे प्रिय हाइकु रचनाकारों की श्रेणी में इंदिरा किसलय जी प्रथम पंक्ति की हाइकु कवयित्री हैं । दिवस आज बेहद खास हुआ क्योंकि इस संग्रह को पढ़ने की बेहद प्रतीक्षा मुझे पहले से थी । कवयित्री इंदिरा किसलय जी के कई हाइकु मेरे द्वारा संपादित हाइकु पत्रिका 'हाइकु मञ्जूषा' में प्रकाशित हुए हैं । आ. इंदिरा किसलय जी हाइकु, ताँका, सेदोका, चोका, हाइबुन आदि जापानी शैलियों की पारखी कवयित्री हैं । अविशा प्रकाशन, नागपुर से प्रकाशित 48 पृष्ठीय 'हाइकु हरसिंगार' प्रकाशन वर्ष 2023, बहुत ही सुंदर, आकर्षक कलेवर, उत्कृष्ट छपाई युक्त मोटे कागजों में बहुत ही सुंदर-सुंदर 346 हाइकु पुष्पों से पुष्पित व सुवासित होता हुआ सुसज्जित है । देश के प्रख्यात व्यंग शिल्पी आदरणीय गिरीश पंकज जी एवं नवोदित प्रवाह के संपादक आदरणीय रजनीश त्रिवेदी 'आलोक' जी जैसे विद्वान रचनाकारों द्वारा प्राक्कथन एवं भूमिका रुपी आशीष प्राप्त होना संग्रह के लिए एवं कवयित्री के लिए निश्चय ही गर्व एवं सौभाग्य का विषय है ।
हाइकु हरसिंगार के हाइकुओं में प्रकृति, प्रणय, नारी, अध्यात्म, राजनीति, हिन्दी आदि किसी भी विषय पर क्यों न हो, इन सबमें कवयित्री की पारखी भावाभिव्यंजना की अनुपम शैली पाठकों के मन को सहज मोह रही है । संग्रह के हाइकुओं में प्रकृति के प्रति सूक्ष्मावलोकन की दृष्टि के साथ साथ मुख्यतः हृदय पक्ष की प्रधानता दृष्टिगोचर है । संग्रह का प्रथम हाइकु देखें -
अनोखी कृति/वर्षा की हर बूँद/है गणपति । (पृष्ठ क्र. 12 )
हाइकु रचना प्रवृत्ति में कवयित्री प्रकृति के साथ बिल्कुल तल्लीन हैं, रचना देखें -
अजन्मे गीत/नदी और जंगल/हैं मेरे मीत । (पृष्ठ क्र. - 13)
नभ तरु से/बरसे धारासार/हरसिंगार । (संग्रह का केंद्रीय हाइकु : पृष्ठ क्र. - 14 )
रजनी का सुंदर चित्र प्रस्तुत करता हुआ एक हाइकु -
'चुप है चाँद/बड़बोले जुगनू/साक्षी रजनी । (पृष्ठ क्र. 15)
स्वयं महकता एवं अग-जग को महकाता सा एक सुंदर हाइकु देखें -
'गीत महका/मोगरे के फूल सा/हवा बौराई । (पृष्ठ क्रमांक - 17)
जल रूपी दर्पण में प्रतिबिंबित स्वयं के बिंब को देखकर कवयित्री का मन स्वयं को खोजने लग जाता है - 'जल दर्पण/प्रतिबिंबित बिंब/उर्मिल मन । (पृष्ठ क्रमांक - 18)
संग्रह के बहुत सारे हाइकु मन को सहज लुभाते जा रहे हैं, लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ, हाइकु देखें और गुनें -
मन में हूक/अमराई से उठी/कुहू की हूक (पृष्ठ क्रमांक - 20)
अमृत झरा/चाँद जैसा हाइकु/रचती धरा । (पृष्ठ क्रमांक - 22)
खिली है रात/नील कमलिनी सी/ऋतु सरसी । (पृष्ठ क्रमांक - 24, द्विक्रिय हाइकु)
प्रणय के हाइकु -
तुम्हारी हँसी/धूप में बरखा सी/दुविधा कैसी । (पृष्ठ क्रमांक - 25)
पुराने खत/क्यों सहजे हैं मैंने/पूछना मत । (पृष्ठ क्रमांक - 26)
बूँदों का जाल/नैन हैं समंदर/गीला रुमाल । (पृष्ठ क्रमांक - 28, भाव बिम्ब)
तुम्हारे खत/तिजोरी में रखे हैं/चुराना मत । (हृदय पक्ष - पृष्ठ क्रमांक - 28)
ताजी पंखुड़ी/रखी थी किताब में/है सूखी पड़ी । (स्मृति बिंब - पृष्ठ क्रमांक - 29)
प्रीत कस्तूरी/मृग मन की कथा/सदा अधूरी । (पृष्ठ क्रमांक - 30)
आंखें हैं म्यान/आंसू और मुस्कान/दोनों कृपाण । (पृष्ठ क्रमांक - 30)
धूप का गांव/रुक जाओ दो घड़ी/यादों की छांव । (पृष्ठ क्रमांक - 32)
नारी पर -
धरा सी धीरा/गंगा सी सदानीरा/नारी तापसी । (पृष्ठ क्रमांक - 33)
नभ छू चला/बेटियों का हौसला/वक्त बदला । (पृष्ठ क्रमांक - 34)
अध्यात्म पर शब्द चित्र -
तन दीपक/मन दीप्त वर्तिका/सूफी क्षणिका । (पृ.क्र. - 37)
रूप निर्झर/ऋचाएं झरती हैं/नित्य भू पर (पृष्ठ क्रमांक - 41)
राजनीति पर -
विधि के हाथ/फकीरों सी लकीरें/श्रम के साथ । (पृष्ठ क्रमांक - 44)
श्रम की स्याही/मजदूर का ख्वाब/रोटी किताब । (पृष्ठ क्रमांक - 45 )
हिंदी भाषा पर -
दीपक तले/तम विगलित हो/मंजिल मिले । (पृष्ठ क्रमांक - 47)
रोटी से जुड़े/मिट्टी की और मुड़े/हिंदी का यान (पृष्ठ क्रमांक - 48)
प्रकृति, प्रणय, नारी, अध्यात्म, राजनीति एवं हिंदी इन छः विषयों पर आधारित एक से बढ़ कर एक सुंदर उत्कृष्ट हाइकु 'हाइकु हरसिंगार' में संग्रहित हुए हैं, इन हाइकुओं को पढ़ने, गुनने, गुनगुनाने से निश्चय पाठक का मन आनंद से आप्लावित हो उठेगा । इसमें कोई संदेह नहीं कि इस अनुपम उत्कृष्ट हाइकु कृति से निश्चय ही हिंदी हाइकु संसार धनाढ्य हुआ है । कृति की विदूषी कवयित्री आदरणीया इंदिरा किसलय जी को इस उत्कृष्ट हाइकु संग्रह 'हाइकु हरसिंगार' के प्रकाशन की अनेकानेक शुभकामनाएं व हार्दिक बधाइयां ज्ञापित करता हूँ ।
~ प्रदीप कुमार दाश 'दीपक'
संपादक : हाइकु मञ्जूषा
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